जिसने त्याग किया वही संसार से तिरा हैः चन्द्रयंश विजय जी म.सा. सिद्धीतप में 81 आराधको से कलश भरवाए गए।

जिसने त्याग किया वही संसार से तिरा हैः चन्द्रयंश विजय जी म.सा.
सिद्धीतप में 81 आराधको से कलश भरवाए गए।
नागदा(निप्र) –
नागदा नगर में स्थानीय पौषधशाला मे चातुर्मास के दौरान विराजित सुप्रसिद्ध जैनसंत द्वारा चन्द्रभान उदयभान चरित्र एवं उत्तरायण सुत्र का वाचन करते हुए गुरूवार को सैकड़ो श्रद्धालुओं के बीच श्री पार्श्व प्रधान पाठशाला भवन मे धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य हेमेन्द्रसुरिश्वर जी म.सा. के शिष्यरत्न एवं आचार्य ऋषभचन्द्रसुरिश्वरजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती मुनि चंद्रयशविजयजी म.सा एवं जिनभद्रविजयजी म.सा. ने प्रवचन में कहा कि राग जैसा रोग नही, द्वेष जैसा दुश्मन नही। हमारा दुनिया में कोई दुश्मन नही। द्वेष आपका दुश्मन है। मोह जैसी अज्ञानता नही। जिसके जीवन में मोह जीवित है, उसमें अज्ञानता है। जहाँ मोह है वहाँ सूतक है। मन्दिर को छोड़कर बच्चे में मोह वहाँ सूतक। व्यक्ति की मृत्यु पर मोह होता, वहाँ सूतक है। प्रभु को छोड़कर मोह में अन्य कहीं भटकना सूतक यानी अज्ञानता है। जिनको जाना था वह गये लेकिन उसके पिछे प्रभु भक्ति और धर्म नहीं छोड़ना चाहिये। मानव जीवन मे धर्म की सत्ता नही है। संसार जैसा सागर नहीं। दुनिया के सारे सागर संसार से छोटे है। त्याग जैसा तारण हार नहीं। जिसने त्याग किया वही संसार से तिरा है। परमात्मा ने भी राजसुख त्याग करके मोक्ष पाया है। 11 साल की लड़की ने कठोर सिद्धि तप करने की सहमति त्याग का बड़ा उदाहरण है। तपस्या हम नहीं करते दैविक शक्ति करवाती है। तपस्या मन के बल से होती है, शरीर की ताकत से होती है। जब तक निरर्थक में से समय की कटौती नहीं करोगे तब तब सार्थक को समय नही दे पाओगे। जहाँ विज्ञान खत्म होता है वहा धर्म शुरू होता है। तपस्या करने वाले ने चिकित्सीय मान्यताएँ धूमिल कर दी है।
गुरूदेव की वासक्षेप की भूमिका तपस्या में होगी महत्वपूर्ण-
पोषधशाला में गुरूवार को सिद्धीतप में कलश भराये गये, रक्षा पोटली दी गई, वासक्षेप दिया गया तथा इस दौरान जाप कराये जायेंगे फिर कलश घर पर ले जायेंगे। गुरूदेव के वासक्षेप से घर पर 9 नवकार और 9 ओसग्रम गिनकर डालना है। कमजोरी मे भी वासक्षेप का उपयोग वासक्षेप का विधान चार उपवास से पिलायेंगे। एक-एक व्यक्ति द्वारा अपना मंत्रित लेकर चान्दी के सिक्के से लाभार्थी द्वारा लेकर अभिमंत्रित किया जायगा। प.पू. मुनिवर के मंत्रोच्चार के साथ आराधको द्वारा चावल से कलश भरा गया।
बड़ी कठिन तपस्या है सिद्वितप की-
सिद्धितप में क्रम से 1 उपवास और पारणा, 2 उपवास और पारणा, 3 उपवास और पारणा, 4 उपवास और पारणा, 5 उपवास और पारणा, 6 उपवास और पारणा, 7 उपवास और पारणा, 8 उपवास और पारणा। इस तरह कुल 36 उपवास के कठोर तप की तपस्या है।
कलश भरवाकर सामुहिक धारणा की गई –
सिद्धितप के 81 तपस्वी प.पू. गुरूदेव के सानिध्य में श्रीसंघ के साथ पार्श्वप्रधान पाठशाला से जुलूस के रूप में गौशाला परिसर पहुंचे जहां पर सभी आराधको का सामूहिक धारणा(भोजन) का आयोजन कराया गया। इस आयोजन के लाभार्थी श्रीमान् कमलेशकुमारजी दर्शनकुमारजी नागदा परिवार थे एवं सभी आराधको को आराधना करने हेतु एक सामग्री की किट प्रदान की गई जिसके लाभार्थी श्रीमान् मन्नालालजी अनिलकुमारजी अल्पेशकुमारजी अतिशकुमारजी नागदा परिवार थे।
इस मौके पर श्रीसंघ अध्यक्ष हेमन्त कांकरिया, संघ सचिव मनीष व्होरा, संघ कोषाध्यक्ष हर्षित नागदा, चातुर्मास समिति अध्यक्ष रितेश नागदा, समिति सचिव राजेश गेलडा, समिति कोषाध्यक्ष निलेश चौधरी, भंवरलाल बोहरा, सुनिल कोठारी, अभय चोपडा, सुरेन्द्र कांकरिया, सुभाष गेलडा, ब्रजेश बोहरा, ऋषभ नागदा, अल्पेश नागदा, राकेश ओरा, सोनव वागरेचा, आशीष चौधरी, यश गेलडा, भावेश बुरड, राकेश ओरा(नुतन), मुकेश बोहरा, मनोज वागरेचा, सुनिल वागरेचा, निलेश कोठारी, राकेश ओरा(प्रेमभाव), निर्मल छोरिया, दिलीप ओरा, पुखराज ओरा, सहित श्रीसंघ के गणमान्य सदस्य उपस्थित थे।
दिनांक – 29/07/2021